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Nov 2024
जैसे-जैसे
जीवन में
उत्तरोत्तर
बढ़ रही है समझ,
वैसे-वैसे
अपनी नासमझी पर
होता है
बेचारगी का
अहसास ।

सच कहूं ,
आदमी
कभी-कभी
रोना चाहता है ,
पर रो नहीं पाता है ।
वह अकेले में
नितांत अपने लिए
एक शरण स्थली
निर्मित करना चाहता है ।
जहां वह पछता सकें ,
जीवन की बाबत
चिंतन कर सके ,
अपने भीतर
साहस भर सकें ,
ताकि
जीवन में संघर्ष
कर सके।

शुक्र है कि
कभी-कभी
आदमी को
अपने ही घर में
एक उजड़ा कोना
नज़र आता है!
जहां आदमी
अपना ज़्यादा
समय बिताता है ।

शुक्र है कि
जीवन की
इस आपाधापी में
वह कोना अभी बचा है,
जहां
अपने होने का अहसास
जिंदगी की डोर से
टंगा है,
हर कोई
इस डोर से
बंधा है ।
शरण स्थली के
इस कोने में ही
सब सधा है।

आजकल यह कोना
मेरी शरण स्थली है,
और कर्म स्थली भी,
जहां बाहरी दुनिया से दूर
आदमी अपने लिए कुछ समय
निकाल सकता है,
जीवन की बाबत
सोच विचार कर सकता है,
स्वयं से संवाद रचा सकता है ।

२२/०२/२०१७.
Written by
Joginder Singh
26
 
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