बच्चो ! नकल यदि तुम करोगे , नकली तुम खुद को करोगे।
देता हूं यदि मैं तुम्हें असलियत से कोसों दूर कभी नकली प्यार दुलार! तुम्हें लुभाने की खातिर मतलब की चाशनी से सराबोर चमक दमक के आवरण से लिपटा कोई उपहार तो समझिए मैंने दिया आपको धोखा। छीन लिया है तुमसे कुछ करने का मौका।
बच्चो! कभी न कभी करता है सौ सौ पर्दों में छुपा झूठ स्वयं को प्रकट तब छल कपट स्वत: होते उजागर । ऐसे में पहुंचता मन को दुःख। सामने आ जाता है यकायक , नकली उपहार मिलने का सच। कैसे न मन को पहुंचे ठेस ? कैसे ना मन में पैदा हो कलह और क्लेश ? इस समय आदमी ही नहीं, आदमियत तक लगने लगती धन लोलुप सौदागर ।
बच्चो ! यदि नकल तुम करोगे। नकली तुम बनोगे।
तुम मां-बाप , देश और समाज को डसोगे ।
आज तुम खुद से करो ये वायदे कि कभी भी भूल से भी नकल नहीं करोगे । जिंदगी में नकली कभी न बनोगे । सच के पथ पर हमेशा चलोगे। जीवन में मतवातर आगे बढ़ोगे। कभी आपस में नहीं लड़ोगे और परस्पर गले मिलोगे।
०१/०३/२०१३.
परीक्षा में नकल करने की प्रवृत्ति को रोकने और इस के दुष्परिणामों से बचने,बचाने के नजरिए से लिखी गई कविता।