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Joginder Singh
Poems
Nov 2024
काश! सबने देश को समझा होता
देश
अलगाव
नहीं चाहता ।
देश
विकास को
वरना है चाहता ।
कोई कोई
घटना दुर्घटना
गले की फांस बनकर
देश को तकलीफ़ है देती।
करने लगती
उसके विश्वास पर चोट ,
हर एक चेहरे पर
नज़र आने लगती खोट ।
देश
अलगाव
नहीं चाहता ।
देश
दुराव छिपाव
कतई नहीं चाहता।
काश !
देश के हर बाशिंदे का चेहरा
पाक साफ़ रह पाता ।
फिर कैसे नहीं
हरेक जीवात्मा
प्रसन्नता को वर पाती?
अपनी जड़ों और मंसूबों को समझ पाती ?
काश !
सबने देश की आकांक्षा,
अंतर्व्यथा को समझा होता
तो अलगाव का बखेड़ा
खड़ा ही न होता ।
देश में संतुलित विकास होता ।
२६/०२/२०१७.
Written by
Joginder Singh
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