कभी किसी चिड़िया को चिड़चिड़ाते देखा है? नहीं तो! फिर तो तुम दिल से चहका करो। कभी बहका न करो। ओ चिड़चिड़े! ओए...चि...डे... भीतर कुछ कुढ़न हुई , जैसे अचानक चुभे सूई ।
अचानक घर के आंगन में एक चिड़िया कीट खाती हुई दिख पड़ी। लगा मुझे कि वह मुझसे कह रही है,.. 'अरे चिड़चिड़े !चहक जरा। चहकने से , जीवन रहता, महक भरा। एकदम चहल पहल भरा।'
यह सब मेरा भ्रम था। शायद मन के भीतर से कोई चिड़िया चहक उठी थी। मेरी उदासीनता कुछ खत्म हुई थी । मैंने अपने मन की आवाज जो सुन ली थी ।
मैंने अपनी आंखें खोलीं। घर के आंगन में धूप खिली थी। वह चिड़िया किसी कल्पना लोक में चली गई थी।