झूठ बोलने वाला, मुझे कतई भाता नहीं । ऐसा व्यक्ति मुझे विद्रूप लगता रहा है। उससे बात करना तो दूर, उसकी उपस्थिति तक को मैंने बड़ी मुश्किल से सहा है।
उसका चलना ,फिरना ,नाचना,भागना। उसकी सद्भावना या दुर्भावना । सब कुछ ही तो मेरे भीतर गुस्सा जगाती रही हैं।
आज अचानक एहसास हुआ, कई दिनों से वह नज़र नहीं आया ! इतना सोचना था कि वह झट से मेरे सामने हंसता ,मुस्कुराता, खिलखिलाता आ गया। मुझ से बोला वह, "अरे चुटकुले! आईना देख । मैं चेहरा हूं तेरा। मुझसे कब तक नज़र चुरायेगा? मुझे कदम-कदम पर अनदेखा करता जाएगा। झूठ बोलना आजकल ज़रूरी है आज बना है यह युग धर्म, कि चोरी सीनाज़ोरी करने वाले जीवन में आगे बढ़ते हैं! सत्यवादी तो बस यहां! दिन-रात भूखे मरते हैं! सो तू भी झूठ बोला कर, जी भरकर कुफ्र तोला कर।"
मुझे अपना नामकरण अच्छा लगा था। आईने को देख मेरा चेहरा खिल उठा था। आईना भी मुझे इंगित कर बोल उठा था, "अरे चुटकुले! अपना चेहरा देख। रोनी सूरत ना बनाया कर। खुद को कभी चुटकुला ना बनाया कर। कभी-कभी तो अपना जी बहलाया कर। किसी में कमियां ना ढूंढा कर, बल्कि उनकी खूबियों को ढूंढ कर, सराहा कर। उनसे ईर्ष्या भूल कर भी न किया कर। कभी तो खुलकर जीया कर। तब तू नहीं लगेगा जोकर।" यह सब सुनकर मुझे अच्छा लगा। मैंने खुद को हल्का-फुल्का महसूस किया।