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Nov 2024
पहला रंग
शब्दशः/

शब्दशः व्यथा अपनी को
मैंने सहजता से व्यक्त किया ,
फिर भी कुछ कहने को बचा रहा।


      दूसरा रंग

रुलना /

ढोल की पोल
खुलनी थी , खुल गई!
अच्छी खासी ज़िंदगी रुल गई।
मैं अवाक मुंह बाए बैठा रहा।
यह क्या मेरे साथ हुआ !!


    तीसरा रंग


   अंततः/

अंततः अंत आ ही गया ‌!
खिला था जो फूल कल ,
वो आज मुरझा ही गया!!

१४/०५/२०२०.
Written by
Joginder Singh
35
 
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