शोषण के विरुद्ध खड़े होने का साहस कोई विरला ही कर पाता है , अन्याय से जूझने का माद्दा अपनी भीतर जगा पाता है ।
तुम अज्ञानता वश उसके खिलाफ़ हो जाओ , यह शोभता नहीं । ऐसे तो शोषण रुकेगा नहीं ।
शोषण न करो , न होने दो । अन्याय दोहन से लड़ने को , आक्रोश के बीजों को भीतर उगने दो । क्या पता कोई वटवृक्ष तुम्हारा संबल बन जाए ! तुम्हें भरा पूरा होने का अहसास करा जाए ! दिग्भ्रम से बाहर निकाल तुम्हें नूतन दिशा दे जाए !!