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Nov 2024
कहते हैं
कानून के हाथ
बहुत लंबे होते हैं ,
पर ये हाथ
कानून के नियम कायदों से
बंधे होते हैं।

कानून
मौन रहकर
अपना कर्तव्य
निभाता है ,
कानून का उल्लंघन होने पर
अधिवक्ता गुहार लगाता है,
बहस मुबाहिसे,
मनन चिंतन के बाद
माननीय न्यायमूर्ति
अपना फैसला सुनाते हैं।
इसे सभी मानने को बाध्य होते हैं ।


न्याय की देवी की
आंखों पर पट्टी बंधी होती है,
उसे मूर्ति के हाथ में तराजू होता है,
जिसके दो पलड़ों पर
झूठ और सच के प्रतीक
अदृश्य रूप से सवार होते हैं
और जो माननीय न्यायाधीश की सोच के अनुसार
स्वयं ही  संतुलित होते रहते हैं।


एक फ़ैसलाकुन क्षण में
माननीय न्यायाधीश जी की
अंतर्मन की आवाज़
एक फैसले के रूप में सुन पड़ती है।

इस इस फैसले को सभी को मानना पड़ता है।
तभी कानून का एक क्षत्र राज
शासन व्यवस्था पर चलता है।
लोकतंत्र का चौथा स्तंभ अपना कार्य करता है।
कानून के कान बड़े महीन होते हैं
जो फैसले के दूरगामी परिणाम
और प्रभावों पर रखते हैं मतवातर अपनी पैनी नज़र।
यह सुनते रहते हैं
अदालत में उपस्थित और बाहरी व्यवस्था की,
बाहर भीतर की हर आवाज़
ताकि आदमी रख सकें
कानून सम्मत अपने अधिकार मांगते हुए,
अपने एहसासों और अधिकारों की तख्तियां सुरक्षित।
आदमी सिद्ध कर सके
खुद को
नख‌ से शिख तक पाक साफ़!!

कानून के रखवाले
मौन धारण कर
करते रहते हैं लगातार
अपने अपने कर्म
ताकि बचे रह सकें
मानवीय जिजीविषा से
अस्तित्व मान हुए
आचार, विचार और धर्म।
बच्ची रह सके आंखों में शर्म।

०२/०६/२०१२.
Written by
Joginder Singh
37
 
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