मजाक उड़ाना , मजे की खातिर अच्छे भले को मज़ाक का पात्र बनाना , कतई नहीं है उचित।
जिसका है मज़ाक उड़ता , उसका मूड ठीक ही है उखड़ता। यही नहीं, यदि यह दिल को ठेस पहुंचाए , तो उमंग तरंग में डूबा आदमी तक असमय ही बिखर जाए , मैं उड़ाना तक भूल जाए ।
मजाक उड़ाना, मज़े मज़े में मुस्कुराते हुए किसी को उकसाना । उकसाहट को साज़िश में बदलना, अपनी स्वार्थ को सर्वोपरि रखना, यह सब है अपने लिए गड्ढा खोदना।
मज़ाक में कोई मज़ा नहीं है , बेवजह मज़ाक के बहाने ढूंढना कभी-कभी आपके भीतर बौखलाहट भर सकता है , जब कोई जिंदा दिल आदमी आपकी परवाह नहीं करता है और शहर की आपको नजर अंदाज करता है, तब आप खुद एक मज़ाक बन जाते हैं । लोग आपको इंगित कर ठहाके लगाते हैं ! आप भीतर तक शर्मसार हो जाते हैं
आप मज़ाक उड़ाना और मज़े लेना बिल्कुल भूल जाते हैं।
पता है दोस्त, नकाब यह दुनिया है नकाबपोश, जहां पर तुम विचरते हो , वहां के लोग नितांत तमाशबीन हैं। दोस्त, भूल कर मजाक में भी मजा न ढूंढ, यह सब करना मति को बनाता है मूढ़! ऐसा करने से आदमी जाने अनजाने मूढ़ मति बनता है। वह अपने आप में मज़ाक का पात्र बनता है। हर कोई उस पर रह रह कर हंसता है। ऐसा होने पर आदमी खिसिया कर रह जाता है। अपना दुःख दर्द चाह कर भी व्यक्त नहीं कर पाता है। आदमी हरदम अपने को एक लूटे-पीटे मोहरे सा पाता है। ०९/०२/२०१७.