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Nov 2024
बेटियों का श्राप
कोई बाप
अपनी नवजात बेटी को मार कर,
उसे गंदे नाले में फैंककर
चल दे बगैर किसी डर के
और बगैर शर्मोहया के करें दुर्गा पूजन ।
तो फिर क्यों न मिले ?
उसे श्राप
उस नन्ही मृतक बिटिया का ?
कोई पिता
ठंड के मौसम में
छोड़ जाएं अपनी बिटिया को,
मरने के लिए ,
यह सोचकर
कि कोई सहृदय
उसे उठाकर
कर देगा सुपुर्द ,
किसी के सुरक्षित हाथों में !
और वह
कर ही लेगा
गुज़र बसर ।
ताउम्र गुज़ार लेगा
ग़रीबी में ,
चुप रहकर
प्रायश्चित करता हुआ।
पर
दुर्भाग्यवश
वह बेचारी
'पालना घर' पहुंचने से पहले ही
सदा सदा की नींद जाए सो
तो क्यों न !
ऐसे पिता को भी
मिले
नन्ही बिटिया का श्राप?

सोचता हूं ,
ऐसे पत्थर दिल बाप को
समय दे ,दे
यकायक अधरंग होने की सज़ा।
वह पिता
खुद को समझने लगे
एक पत्थर भर!

चाहता हूं,
यह श्राप
हर उस ‌' नपुंसक ' पिता को भी मिले
जो कि बनता है  पाषाण हृदय ,
अपनी बिटिया के भरण पोषण से गया डर ।
उसे अपनी गरीबी पहाड़ सी दुष्कर लगे।

कुछ बाप
अपनी संकीर्ण मानसिकता की वज़ह से
अपनी बिटिया के इर्द गिर्द
आसपास की रूढ़िवादिता से डरकर
नहीं देते हैं
बिटिया की समुचित परवरिश पर ध्यान,
उनको भी सन्मति दे भगवान्।

बल्कि
पिता कैसा भी हो?
ग़रीब हो या अमीर,
कोई भी रहे , चाहे हो धर्म का पिता,
उन्हें चाहिए कि
वे अपनी गुड़ियाओं के भीतर
जीवन के प्रति
सकारात्मक सोच भरें
नाकि
वे सारी उम्र
अपने अपने  डरों से डरें ,
कम से कम
वे समाज में व्याप्त
मानसिक प्रदूषण से
स्वयं और बेटियों को
अपाहिज तो न करें।


चाहता हूं,
अब तो बस
बेटियां
सहृदय बाप की ही
गोद में खिलें
न कि
भ्रूण हत्या,
दहेज बलि,
हत्या, बलात्कार
जैसी अमानुषिक घटनाओं का
हों शिकार ।
आज समय की मांग है कि
वे अपने भीतरी आत्मबल से करें,
अपने अधिकारों की रक्षा।

अपने भीतर रानी लक्ष्मीबाई,
माता जीजाबाई,
इंदिरा,
मदर टैरेसा,
ज्योति बाई फुले प्रभृति
प्रेरक व्यक्तित्वों से प्रेरणा लेकर
अपने व्यक्तित्व को निखारने के लिए
अथक परिश्रम और प्रयास करें
ताकि उनके भीतर
मनुष्योचित पुरुषार्थ दृष्टिगोचर हो,
इसके साथ साथ
वे अपने लक्ष्य
भीतर ममत्व की विराट संवेदना भरकर पूर्ण करें।
वे जीवन में संपूर्णता का संस्पर्श करें।
Written by
Joginder Singh
71
   Vanita vats
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