श्रम केवल परिश्रम ही सच को प्रत्यक्ष करने का , बन पाता है माध्यम।
सच और श्रम, दोनों अनुभूति का अंश बनकर कर देते हैं जीवन में कायाकल्प।
यदि तुम जीवन में आमूल चूल परिवर्तन देखना चाहते तो जीवन में शुचिता को वर्षों, उतार-चढ़ावों के बीच बहती
इस जीवन सरिता पर तनिक चिंतन मनन करो,
सच और श्रम के सहारे जीवन मार्ग को करो प्रशस्त।
तुम विनम्र बनो। निज देह को शुचिता की कराओ प्रतीति। ताकि सच और श्रम अंतर्मन में उजास भर सकें, जीवन में सुख की छतरी सके तन, तन और मन रहें प्रसन्न। सब दुःख , दर्द , निर्दयता की बारिश से बच सकें। जीवन रण में विजय के हेतु डट सकें और आगे बढ़ सकें। २०/०२/२०१७.