मुख मुरझा गया अचानक
जब सुख की जगह पर पहुंच दुःख
सोचता रहा बड़ी देर तक
कि कहां हुई मुझ से भूल ?
अब कदम कदम पर चुप रहे हैं शूल।
उसी समय
रखकर मुखौटा अपने मुख से अति दूर
मैं कर रहा था अपने विगत पर विचार,
ऐसा करने से
मुझे मिला
अप्रत्याशित ही
सुख चैन और सुकून।
सच !उस समय
मैंने पाया स्वयं को तनाव मुक्त ।
दोस्त,
मुद्दत हुए
मैं अपनी पहचान खो चुका था।
अपनी दिशा भूल गया था।
हुआ मैं किंकर्तव्यविमूढ़,
असमंजस का हुआ शिकार ,
था मैं भीतर तक बीमार,
खो चुका था अपने जीवन का आधार।
ऐसे में
मेरे साथ एक अजब घटना घटी ।
अचानक
मैंने एक फिल्म देखी, आया मन में एक ख्याल।
मन के भीतर दुःख ,दर्द ,चिंता और तनाव लिए
क्यों भटक रहे हो?
क्यों तड़प रहे हो?
तुम्हें अपने टूटे बिखरे जीवन को जोड़ना है ना !
तुम विदूषक बनो ।
अपने दुःख दर्द भूलकर ,
औरों को प्रसन्न करो।
ऐसा करने से
शायद तुम
अपनी को
चिंता फिक्रों के मकड़ जाल से मुक्त कर पाओ।
जाओ, अपने लिए ,
कहीं से एक मुखौटा लेकर आओ।
यह मुखौटा ही है
जो इंसान को सुखी करता है,
वरना सच कहने वाले इंसान से
सारा जमाना डरता है।
इसलिए मैं तुमसे कहता हूं ,
अपनी जिंदगी अपने ढंग से जियो।
खुद को
तनाव रहित करो ,
तनाव की नाव पर ना बहो।
तो फिर
सर्कस के जोकर की तरह अपने को करो।
भीतर की तकलीफ भूल कर, हंसो और खिलखिलाओ।
दूसरों के चेहरे पर प्रसन्नता के भाव जगाओ।
उसे दिन के बाद
मैं खुद को बदल चुका हूं।
सदैव
एक मुखौटा पहने रखता हूं,
ताकि
निज को सुरक्षित रख सकूं।
दोस्त,
अभी-अभी
मैं अपना प्यारा मुखौटा
रख कर गया हूं भूल।
यदि वह तुमको मिले
तो उसे मुझ को दो सौंप,
वरना मुखौटा खोने का ऋण
एक सांप में बदल
मुझे लेगा डस,
जीवन यात्रा थम जाएगी
और वेब सी मेरे भीतर
करने के बाद भी भरती जाएगी,
जो मुझे एक प्रेत सरीखा बनाएगी।
मुझे अच्छी तरह से पता है
कि यदि मैं मुखौटा ओढ़ता हूं,
तो तुम भी कम नहीं हो,
हमेशा एक नक़ाब पहने रहते-रहते
बन चुके हो एक शातिर ।
हरदम इस फ़िराक़ में रहते हो,
कब कोई नजरों से गिरे,
और मैं उसका उपहास उड़ाऊं।
मेरे नकाबपोश दोस्त,
अब और ना मुझे भरमाओ।
जल्दी से मेरा मुखौटा ढूंढ कर लाओ।
मुझे अब और ज़्यादा न सताओ।
तुम मुझे भली भांति पहचानते हो!
मेरे उत्स तक के मूल को जानते हो।
मेरा सच है कि
अब मुखौटे में निहित है अस्तित्व का मूल।
दोस्त , नक़ाब तुम्हारी तक पर
पहुंच चुकी है मेरे मुखौटे की धूल।
तुमने ही मुझसे मेरा मुखौटा चुराया है।
अभी-अभी मुझे यह समझ आया है।
तुम इस समय नकाब छोड़ , मेरा मुखौटा ओढ़े हो।
मेरे मुखौटे की बू, अब तुम्हारे भीतर रच चुकी है।
मेरी तरह ,अब तुम्हारी
नक़ाब पहनने की
जिंदगी का खुल गया है भेद।
मुझे विदित हो चुका है कि
कृत्रिमता की जिंदगी जी कर
व्यक्ति जीवन में
छेदों वाली नौका की सवारी करता है
और पता नहीं,
कब उसकी नौका
जीवन के भंवर में जाए डूब।
कुछ ऐसा तुम्हारे साथ घटित होने वाला है।
यह सुनना था कि
मेरे नकाबपोश मित्र ने
झट से
मेरा मुखौटा दिया फैंक।
उस उसे मुखौटे को अब मैं पहनता नहीं हूं ।
उसे पहन कर मुझे घिन आती है।
इसीलिए मैंने मुखौटे का
अर्से से नहीं किया है इस्तेमाल।
आज बड़े दिनों के बाद
मुझे मुखौटे का ख्याल आया है।
सोचता हूं कि
मुखौटा मुझ से
अभी तक
अलहदा नहीं हो पाया है।
आज भी
कभी-कभी
मुखौटा मेरे साथ
अजब से खेल खेलता है।
शायद उसे भी डर है कि
कहीं मैं उसे जीवन में अनुपयोगी न समझने लगूं।
कभी-कभी वह
तुम्हारी नक़ाब के
इशारे पर
नाचता नाचता
चला जाना चाहता है
मुझ से बहुत दूर
ताकि हो सके
मेरा स्व सम्मोहन
शीशे सा चकनाचूर ।
हकीकत है...
अब मैं उसके बगैर
हर पल रहता हूं बेचैन
कमबख़्त,
दिन रात जागते रहते हैं
अब उसे दिन मेरे नैन।
कभी-कभी जब भी मेरा मुखौटा
मुझे छोड़ कहीं दूर भाग जाता है
तू रह रहकर मुझे तुम्हारा ख्याल आता है।
मैं सनकी सा होकर
बार-बार दोहराने लगता हूं।
दोस्त , मेरा मुखौटा मुझे लौटा दो।
मेरे सच को मुझ से मिला दो ।
अन्यथा मुझे शहर से कर दो निर्वासित ।
दे दो मुझे वनवास,
ताकि कर सकूं मैं
आत्म चिंतन।
मैं दोनों, मुखौटे और सच से
मुखातिब होना चाहता हूं ।
कहीं ऐसा न हो जाए कभी ।
दोनों के अभाव में,
कि कर न सकूं
मैं अपना अस्तित्व साबित।
बस कराहता ही नज़र आऊं !
फिर कभी अपनी परवाज़ न भर पाऊं !!
१७/०३/२००६. मूल प्रारूप।
संशोधन ३०/११/२००८.
और २४/११/२०२४.