भीतर के प्रश्न क्या अब हो गए हैं समाप्त? क्या इन प्रश्नों में निहित जिज्ञासाओं को मिले कोई संतुष्टिप्रद उत्तर ? क्या वे हैं अब संतुष्ट ?
कभी-कभी उत्तर करने लगते हैं प्रश्न ! वे हमें करने लगते हैं निरुत्तर!
आज कर रहें हैं वे प्रश्न, ' भले आदमी, तुम कब से हो मृत? तुमने चिंतन करना क्यों छोड़ दिया है ? तुम तो अमृतकुंड की तलाश में सृष्टि कणों के भीतर से निकले थे। फिर आज क्यों रुक गए? अपनी यात्रा पर आगे बढ़ो, यूं ही रुक न रहो। ' ३०/११/२००८.