Submit your work, meet writers and drop the ads. Become a member
Nov 2024
भीतर के प्रश्न
क्या अब हो गए हैं समाप्त?  
क्या इन प्रश्नों में निहित
जिज्ञासाओं को
मिले कोई संतुष्टिप्रद उत्तर ?
क्या वे हैं अब संतुष्ट ?


कभी-कभी
उत्तर
करने लगते हैं प्रश्न !
वे हमें
करने लगते हैं
निरुत्तर!

आज
कर रहें हैं
वे प्रश्न,
' भले आदमी,
तुम कब से हो मृत?
तुमने चिंतन करना
क्यों छोड़ दिया है ?
तुम तो अमृतकुंड की
तलाश में
सृष्टि कणों के
भीतर से निकले थे।
फिर आज क्यों
रुक गए?
अपनी यात्रा पर
आगे बढ़ो, यूं ही
रुक न रहो। '
३०/११/२००८.
Written by
Joginder Singh
43
 
Please log in to view and add comments on poems