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Nov 2024
औपचारिकता
लेती है जब
सर्प सी होकर
डस।
आदमी का
अपने आसपास पर
नहीं
चलता कोई
वश।

तुम
अनौपचारिकता को
धारण कर,
उससे
अकेले में
संवाद रचा कर,
आदमी की
समसामयिक
चुप्पी  को तोड़ो।
उसे
जिंदगी के
रोमांच से
जोड़ो ।

तुम
जोड़ो
उसे जीवन से
ताकि
वह भी
निर्मल
जल धारा सा
होकर बहे ,
नाकि
अब और अधिक
अकेला रहे
और
अजनबियत का
अज़ाब सहे।

१०/०१/२००९.
Written by
Joginder Singh
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