प्राप्य को झुठलाते नहीं , उसे दिल से स्वीकारते हैं । अगर वह ना मिले तो भी उसे हासिल करने की चेष्टा करना ही मानव का सर्वोपरि धर्म है । यह जीवन का मर्म है । प्राप्य की खातिर जीवन में जिजीविषा भरना , परम के आगे की गई एक प्रार्थना है ।
जिसके भीतर प्राप्य तक पहुंचने की बसी हुई संभावना है!!
जीवन अपने आप में बहुत बड़ी प्राप्ति है, जन्म और मरण के बीच नहीं हो सकती इसकी समाप्ति है ।
अतः आज तुम कर लो खुद पर तुम यक़ीन कि यकीनन जीवन की समाप्ति असंभव है, मृत्यु भी एक प्राप्ति ही है जो मोक्ष का मार्ग है , शेष परमार्थ के धागे से बंधा इच्छाओं के जाल में फंसे आदमी का स्वार्थ भर है। इसे न समझ पाने से जीवन का नीरस होना मरना भर है! अपने अंदर डर भरना भर है !