हे कामदेव! जब तुम तन मन में एक खुमारी बनकर देहवीणा को अपना स्पर्श कराते हो तो तन मन को भीतर तक को झंकृत कर जीवन में राग और रागिनी के सुर भर जाते हो।
ऐसे में सब कुछ तुम्हारे सम्मोहन में अपनी सुध बुध ,भूल बिसार दुनिया की सब शर्मोहया छोड़ कर इक अजब-गजब सी मदहोशी की लहरों में डूब डूब
कहीं दूर चला जाता है, यह सब आदमी के भीतर सुख तृप्ति के पल भर जाता है।
इन्द्रियां अपने कर्म भूल कामुकता के शूल चुभने से कुछ-कुछ मूक हुईं अपने भीतर सनसनाहट महसूस पहले पहल रह जातीं सन्न ! तन और मन कहीं गहरे तक होते प्रसन्न!!
और सब इन आनंदित क्षणों को दिल ओ दिमाग में उतार निरंतर अपना शुद्धीकरण करते हैं।
कभी-कभी भीतर सन्नाटा पसर जाता है। इंसान अपनी सुध-बुध खोकर रोमांस और मस्ती की डगर पर चल देता है।
हे कामदेव! तुम देह मेरी में ठहरकर आज वसन्तोत्सव मनाओ। काम तुम मेरी नीरस काया के भीतर करो प्रवेश। मेरी नीरसता का हरण करो। तुम और के दर पर न जाओ।
हे कामदेव! तुम मेरे भीतर रस बोध कराकर मुझे पुनर्जीवित कर जाओ। ताकि सुलगते अरमानों की मृत्युशैया के हवाले कर मुझे समय से पहले बूढ़ा न कर पाओ।
हे कामदेव! तुम समय समय पर अपने रंग मुझ पर छिड़का कर मुझे अपनी अनुभूति कराओ । काम मेरे भीतर सुरक्षा का आभास करवाओ। यही नहीं तुम सभी के भीतर जीवंतता की प्रतीति करवाओ।