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Nov 23
यह सच है कि
घड़ी की टिक टिक के साथ
कभी ना दौड़  सका,
बीच रास्ते हांफने लगा।

सच है यह भी कि
अपनी सफलता को लेकर
रहा सदा मैं
आशंकित,
अब केवल बचा रह गया है भीतर मेरे
लोभ ,लालच, मद और अहंकार ।
हर पल रहता हूं
छल कपट करने को आतुर ।
किस विधि करूं मैं अंकित ,
मन के भीतर व्यापे भावों के समुद्र को
कागज़,या फिर कैनवास पर?
फिलहाल मेरे
दिल और दिमाग में
धुंध सा छाया हुआ है डर ,
यह बना हुआ
आजकल
मेरे सम्मुख आतंक ।
मन के भीतर व्यापे अंधेरे ने
मुझे एक धुंधलके में  ला खड़ा किया है।
यह मुझे मतवातर करता है
भटकने को हरदम विवश !
फल स्वरूप
हूं जीवन पथ पर
क़दम दर कदम
हैरान और परेशान !!

कैसे, कब और कहां मिलेगी मुझे मंजिल ?

कभी-कभी
थक हारकर
मैं सोचता हूं कि
मेरा घर से बेघर होना ,
ख़ानाबदोश सा भटकना ही
क्या मेरा सच है?
आखिर कब मिलेगा मुझे
आत्मविश्वास से भरपूर ,एक सुरक्षा कवच ,
जो बने कभी
मुक्तिपथ का साथी
इसे खोजने में मैंने
अपनी उम्र बिता दी।
मुझे अपने जीवन के अनुरूप
मुक्तिपथ चाहिए
और चाहिए जीवन में परमात्मा का आशीर्वाद ,
ताकि और अधिक जीवन की भटकन में
ना मिले
अब पश्चाताप और संताप।
मैं खोज लूं जीवन पथ पर आगे बढ़ते हुए ,
सुख और सुकून के दो पल,
संवार सकूं अपना वर्तमान और कल।
मिलती रहे मुझे जीवन में
आगे बढ़ने की शक्ति और आंतरिक बल।
०६/०१/२००९.
Written by
Joginder Singh
31
   Vanita vats
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