"चट चट चटखारे ले, न! न!! नज़ारे ले। जिन्दगी चाट सरीखी चटपटी, मत कर हड़बड़ी गड़बड़ी। बस जीना इसे,प्यारे , सीख ले।" यह सब योगी मन ने भोगी मन से कहा। इससे पहले कि मन में कोहराम मचे, योगी मन समाधि और ध्यान अवस्था में चला गया । भोगी मन हक्का बक्का , भौंचक्का रह गया। जाने अनजाने जिंदगी में एक कड़वा मज़ाक सह गया। ०२/०१/२००९.