इससे पहले कि क्रोध का ज्वर चढ़े, मेरे भाई, तू भाग ले । दुम दबाकर भाग ले । कुत्ते कहीं के।
अचानक जिंदगी में यह सब सुना तो पता नहीं क्यों? मैं चुप रहा। मुझे डर घेर रहा।
सोचा कब उससे लड़ने का साहस जुटाऊंगा ? कभी अपने पैरों पर खड़ा हो पाऊंगा भी कि नहीं ? या फिर पहले पहल व्यवस्था को कोसता देखा जाऊंगा और फिर व्यवस्था के भीतर घुसपैठ कर दुम हिलाऊंगा ।
सच ! मैं अनिश्चय में हूं। अर्से से किंकर्तव्यविमूढ़! कहीं गहरे तक जड़!! २३/०१/२००९.