इससे पहले कि कोई माकूल जवाब देता, दोस्त कह बैठा, लगता है, सेहत तुम्हारी का है बुरा हाल।
मैंने उम्र के सिर चुपके से ठीकरा फोड़ा ! पर , भीतर पैदा हो गया एक कीड़ा ! जो भीतर ही भीतर खाए जा रहा है।
अब मैं बोलता हूं थोड़ा , ज्यादा बोला तो बरसाऊंगा कोड़ा , अपने पर और अपनों पर , मन में रहते सपनों पर , कोई सच बोल कर कतर देता है पर ,इस कदर , भटकता फिरता हूं होकर दर-बदर ।
अब तो मुझे दोस्तों तक से लगने लगा है डर , कहना चाहता हूं ज़माने भर की हवाओं से दे दो सबको यह पैग़ाम ,यह ख़बर। मिलने जरूर आएं, पर भूल कर भी कह न दें कोई कड़वा सच कि लगे काट दिए हैं किसी ने पर , अब प्रवास भरनी हो जाएगी मुश्किल।
वे खुशी से आएं, जीवन में हौसला और हिम्मत भरकर जाएं। दिल में कुछ करने की उमंग तरंग जगाएं ।