याद रखो ,दोस्त ! मुंहफट कभी उर में कुछ छुपा कर नहीं रखते। इधर सुना नहीं कि मुंह खुला नहीं । वे तत्काल कर देते हैं हिसाब किताब। तुम अब भी उनके मुंह लगना चाहोगे। तुम कभी उन्हें वाद विवाद संवाद में पराजित नहीं कर पाओगे। मुंह फट को हार जाने, हार कर मुँह फुलाने की आदत नहीं होती। आज तो तुम ढूंढ़ ही लो मुंहफट भाई को मज़ा चखाने का कोई नुस्खा या फिर कोई नुक्ता। तुम उसकी नुक्ताचीनी ही न करो तो अच्छा। वो समझता है तुम्हें बच्चा , और तुम उसके सामने तनना चाहते हो। रहने दो,झुक जाओ। अपने अंतर्मन से संवाद रचाने के प्रयास करो। नाहक मुंहफट को न गले लगाया करो। अपने भीतर के अहंकार को कुछ तो दबाया करो। हो सकता हे कि वह चुप रह जाए। और तुम को करार मिल पाए।