Submit your work, meet writers and drop the ads. Become a member
Nov 2024
असंतोष की लपटों से घिरा आदमी
छल प्रपंच,उठा पटक के चलते
क्या कभी ऊपर उठ पाएगा?
वह अपने पैरों पर  खड़ा होने की
क्या कभी हिम्मत वह जुटा पाएगा ?


तुम उसके भविष्य को लेकर
दिन रात चिंतित रहते हो।
यदि तुम उसका भला चाहते हो ,
तो कर दो भय दूर उसके भीतर से।
देखना वह स्वत: साहसी हो जाएगा।
सच्चा साथी बनकर सबको दिखाएगा।
बशर्ते तुम भी उसकी तरह संजीदा रहो।
उस के साथ इंसाफ की आवाज उठाते रहो।
हाथों में थाम कर मशाल
उसके साथ साथ चल सको।
Written by
Joginder Singh
41
 
Please log in to view and add comments on poems