दुनिया को कर भी ले विजित किसी चमकदार दिन कोई सिकंदर और कर ले हस्तगत सर्वस्व। धरा की सम्पदा को लूट ले। तब भी माया बटोरने में मशगूल, लोभ,लालच, प्रलोभन के मकड़जाल में जकड़ा वह,महसूस करेगा किसी क्षण भले वह विजयी हुआ है, पर ...यह सब है व्यर्थ! करता रहा जीवन को अभिमान युक्त। पता नहीं कब होऊंगा? अपनी कुंठा से मुक्त।!
कभी कभी वजूद अपना होना,न होना को परे छोड़कर खो देता है अपनी मौजूदगी का अहसास। यह सब घटना-क्रम एक विस्फोट से कम नहीं होता।
सच है कि यह विस्फोट कभी कभार ही होता है। ऐसे समय में रीतने का अहसास होता है। अचानक एक विस्फोट अन्तश्चेतना में होता है, विजेता को नींद से जगाने के लिए! मन के भीतर व्यापे अंधेरे को दूर भगाने के लिए!!