देश की आर्थिकता आजकल बैसाखियों के आसरे चल रही है , सोचता हूं, देश के भीतर तभी आर्थिक अपराध बढ़े हैं, सभी भीतर तक भ्रष्ट हुए हैं।
देश समाज और दुनिया में सभी अपनी आर्थिकता को सुदृढ़ कर रहे हैं मतवातर हम ही धनार्जन की दौड़ में पिछड़े हुए हैं। आखिरकार ऐसा क्यों है?
आजकल सत्ताधारी दल और विपक्षी दल परस्पर लड़ रहे हैं , नूरा कुश्ती कर रहे हैं।
परस्पर एक दूसरे पर हेराफेरी करने, भ्रष्टाचारी होने के आरोप प्रत्यारोप लगा रहे हैं। इन दोनों की लड़ाई का कुछ आर्थिक शक्तियां लाभ उठा रही हैं। देश भर में निवेश, शेयरों को अपने हाथों में लेकर रक्त चूसने की हद तक लाभ कमा रही हैं। उपभोक्ताओं को सस्ते सामान मुहैया कर लुभा रही हैं। अंदर ही अंदर देश की आर्थिकता को दीमक सी होकर खोखला करती जा रही हैं।
आज देश का व्यापार संतुलन बिगड़ चुका है,आयात अधिक, निर्यात कम है। इस स्थिति को समझते बूझते हुए भी सत्ता पक्ष और विपक्ष चोरी-चोरी ,चुपके-चुपके अपना अपना खेल, खेल रहे हैं। जन साधारण इन सब के बीच पिस रही है। देश की आर्थिकता चुपचाप परित्यक्ताओं सी होकर सिसकियां भर रही है। हाय! देश की शासन व्यवस्था क्या कर रही है?