तमाम खाद्यान्न पदार्थों में खिचड़ी का मिलना किसी वरदान से कम नहीं। इसे खाकर तो देख सही।
गले में खिचखिच खा खिचड़ी जीवन में खिचखिच गा और खिचड़ी भाषा में पढ़ कबीर जी का सच कैसे नहीं होगा प्राप्त ? जीवन में आस्था का सुरक्षा कवच !अगर म अनायास सीख पाओगे स्वयं को रखना शांत।
खिचड़ी खा, खिचड़ी भाषा के कवि को गुन और... हां...तूं मन मेरे अपने भीतर का राग सुनाकर, उसे ही गुनाकर !
जीवन भरने करना दूर अपने को खिचड़ी से बनना मस्त मलंग खाकर, जीकर खिचड़ी के संग मिलेंगे जीवन के खोये रंग, जीवन न होगा और अधिक बदरंग, मटमैला, यह जीवन नहीं होगा प्रतीत एक मेला -झमेला । ०९/१०/२००८.