कोई भी रही हो वजह रिश्ते बनने ,बिगड़ने की उसकी बेवजह ना करो पड़ताल ।
चुपचाप अपने करते रहो काम, बेवजह दर्द अपनों के में करते ना रहो इज़ाफ़ा ।
कोई भी रही हो वजह शत्रुता बढ़ाने की या फिर मित्रता निभाने की बेवजह उसे तूल ना देकर , तिल का ताड़ ना बनाकर , सच को करो स्वीकार । समझ लो, बाकी है सब बेकार ।
कायम रखो मिज़ाज अपने को , ताकि बढ़ता रहे मतवातर जिंदगी का जहाज, समय के समन्दर में , उसे लंगर की रहे ना जरूरत।