जाति के चश्मे से देखोगे अगर तुम आदमी को, तो आदमियत से दूर होते जाओगे !
विकास के नाम पर चाहे अनचाहे ही एक जंगल राज खड़ा कर जाओगे! बेशक पछताओगे! खुद को कभी-कभी मकड़जाल में जकड़ी एक मकड़ी सरीखा तुम खुद को पाओगे । अपनी नियति को कैद महसूस कर , तुम मतवातर अपनी भीतर , घुटन महसूस कर,तिलमिलाए देखे जाओगे। तुम कब इस दुष्चक्र से बाहर निकल कर आओगे?
ठीक है ,जाति तुम्हारी पहचान है। कोई तुम्हें जाति में विचरने से नहीं रोकता । बेशक जाति पहचान रही है , परंपरावादी व्यवस्था की । आज जरूरत है , इस व्यवस्था में स्वच्छता लाने की , इसके गुणों व अच्छाइयों को, दिल से अपनाने की ।
यदि जाति के चश्मे से ना देखोगे आदमी को । सदैव साफ रखोगे नीयत तुम अपनी को , तो जाति तुम्हारी पहचान बनेगी । यह कभी विकास में बाधक न बनेगी । ०८/०२/२०१७