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Nov 19
आज
अचानक मां की याद आई ,
मेरी आंखें भर आईं।
मां
आखिरी समय में
कुछ-कुछ
जिद्दी हो गईं थीं
मानो
उन्हें इस
जगमग जगमग करते जगत से
विरक्ति हो गई हो।
उन्हें समस्त
सांसारिक चमक दमक
फीकी और बेकार
लगने लगी हो।
वह
तस्वीर खिंचवाने से
कतराने लगी थीं।

आज
अचानक
नए वर्ष के दिन
बस में यात्रा करते हुए
उगते सूरज का
अक्स
खिड़की के शीशे में देखकर,
इसके साथ ही
अपनी काया में
बुढ़ापे के लक्षण महसूस कर
अपनी देह के भग्नावशेष
दर्पण में देख
मैं रह गया था सन्न !
मुझे मां की याद आई थी ।
मेरी आंखें भर आईं थीं ।
वर्षों बाद
अब अचानक
मां की व्यथा
मेरी समझ में आई थी।
मां क्यों तस्वीर खिंचवाने से
कतराईं थीं।
मां
मौत की परछाई को
आसपास मंडराते देख
आगत की आहट को समझ पाई थीं।
शायद यही वजह रही हो
मां के जिद्दी हो जाने की ।
मेरी चेतना में
अचानक मां की जो तस्वीर उभरी थी
उसे मैंने नमन किया ।
देखते ही देखते
मां की वह स्मृति अदृश्य हुई।
आंखें खुलीं
तो मुझे एहसास हुआ
कि मैं बस में हूं
और
मेरा गंतव्य आ गया है।
मैं बस से उतरने की तैयारी करने लगा ।
मां मेरी स्मृतियों में सदैव बसी हैं।
मेरी आंखें भरी हैं।
Written by
Joginder Singh
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   Vanita vats
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