जिन्दगी जी रहा है वह भी जो रहा सदैव अभावग्रस्त करता रहा सतत् संघर्ष ।
जिन्दगी जी रहा है वह भी जो रहा सदैव खुशहाल। पर रखा उसने बहुतों को फटेहाल! लोभ , मद,मोह के जाल में फंसा कर किया बेहाल।
जिन्दगी तुम भी रहे हो जी, अपने अभावों की वज़ह से मतवातर रहते हमेशा खीझे हुए। सोचो ऐसा क्यों? क्या चेतना गई सो? ऐसा क्यों? ऐसा क्यों ? चेतना को जागृत करो। अपने जीवन लक्ष्य की ओर बढ़ो। १९/०२/२०१३.