Submit your work, meet writers and drop the ads. Become a member
Nov 2024
जिन्दगी
जी रहा है
वह भी
जो रहा सदैव
अभावग्रस्त
करता रहा
सतत् संघर्ष ।


जिन्दगी
जी रहा है
वह भी
जो रहा सदैव
खुशहाल।
पर रखा उसने
बहुतों को
फटेहाल!
लोभ , मद,मोह के
जाल में फंसा कर
किया बेहाल।



जिन्दगी
तुम भी रहे
हो जी,
अपने अभावों की
वज़ह से
मतवातर
रहते
हमेशा
खीझे हुए।
सोचो
ऐसा क्यों?
क्या
चेतना गई सो? ऐसा क्यों?
ऐसा क्यों ?
चेतना को
जागृत करो।
अपने जीवन लक्ष्य की
ओर बढ़ो।
१९/०२/२०१३.
Written by
Joginder Singh
47
   Vanita vats
Please log in to view and add comments on poems