खरा कभी नहीं सोचता कि खोट मन में रही होगी सो पहन लिया था उसने अचानक मुखौटा । मगर खोटा क्या कभी सोचता है कि खोट करने से वह दिखने लगेगा छोटा , सभी के सम्मुख ही नहीं , स्वयं के समक्ष भी ।
वह हमेशा हरि हरि कहता है, एक दिन खरा बन पाता है । फिर वह हर बार पूर्ववत विश्वास पर अडिग रहते हुए खरी खरी बातें सभी से कहता है।
मगर खोटा। खोट को भी शुद्ध बताता है, वह खोट में भी शुद्धता की बात करता है , और अपनी साख गवां देता है। मगर विदूषक पैनी नज़र रखता है, वह अपने अंतर्मुखी स्वभाव से मुखौटे का सच जान जाता है।
वह कभी हां की मुद्रा में सिर हिलाकर, और कभी न की मुद्रा में सिर हिलाकर, मतवातर हां और न की मुद्राओं में सिर हिला,हिला कर खोटे के अंतर्मन में भ्रम उत्पन्न कर देता है। खोटा अपने मकड़जाल में फंसकर सच उगल देता है।
अपने इस हुनर के दम पर विदूषक हरदिल अजीज बन पाता है।
वह सभी के सम्मुख दिल से ठहाके लगाने लगता है, यही नहीं वह सभी से ठहाके लगवाता है। इस तरह विदूषक सभी को आनंदित कर जाता है।