मुझे पाश्चात्य जगत आकर्षित करता रहा है, अपने अंतर्द्वंद्वों से इतर वह मुझ में जीवन चेतना और नैतिकता भी भर रहा है। आज वह अद्भुत जगत क्यों परस्पर लड़ रहा है ? वह संपन्नता,खुशहाली की प्रेरणा बना रहा है, अब क्यों वह नफरत कीआग से जल रहा है? वहाँ का नेतृत्व क्या कर रहा है ? जन साधारण के भीतर डर भर रहा है। वहां भी यहां की तरह भाई भाई परस्पर लड़ रहे हैं। मानव जीवन नर्क बनता जा रहा है। दोस्त! कुछ समझ आ रहा है ? यह जीवन अपने अंतर्द्वंद्वों की वज़ह से निष्फल बीता जा रहा है।