गंगा प्रसाद अक्सर सोचता है, आज अपना गंगा प्रसाद, रह रह कर यह सोचता है कि दंगा फसाद और नफरत से फैली आग, दोनों के मूल में छिपा रहता है विवाद । यह विवाद संवाद में बदलना चाहिए । अपना गंगा प्रसाद इस बाबत सोचता है । विवाद हों ही न! ऐसा होना चाहिए जन गण का प्रयास! दंगा फसाद नहीं होता अनायास इसके पीछे होता है धीरे-धीरे बढ़ता असंतोष और अविश्वास। या फिर सत्य को झूठलाने , जनता को बहकाने की खातिर रची गई साजिश! जो कर देती कभी-कभी व्यक्ति देश समाज को अपाहिज । दंगे फसाद के पीछे कौन सक्रिय रहता है ? इस बाबत सोचते सोचते गंगा प्रसाद सरीखा आदमी कभी-कभी निष्क्रिय हो जाता है। नकारात्मक सोच का शिकार होकर आज का आदमी अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार लेता है । ११/८/२०२०.