टटपुंजिया हूँ। क्यों टटोलते हो ? सारी जिंदगी निठल्ला रहा। अब ढोल की पोल खोलते हो! मेरे मुंह पर सच क्यों नहीं कह देते ? कह ही दो मन में रखी बात। अवहेलना के दंश सहता आया हूं।
एक बार फिर दर्द सह जाऊंगा। काश! तुम मेरी व्यथा को समझो तो सही। यदि ऐसा हुआ तो निस्संदेह मैं जिंदगी की दुश्वारियों को सह जाऊंगा। दुश्मनों से लोहा ले पाऊंगा। सामने खड़ी हार को विजय के उन्माद में बदल जाऊंगा । २६/०७/२०२०.