श्री मान
रख रहा हूं आपके सम्मुख सत्ता का चरित्र कि
सत्ता सताती भर है ।
दीन,हीन,शोषित,वंचित,
सब होते रहे हैं इसके अत्याचार का शिकार ।
सत्ता का चरित्र
बेझिझक, बेहिचक मौत बांटना है ,
चूंकि उसने व्यवस्था को साधना है।
सत्ता की दृष्टि में
क्रूरता जरूरी है,
इस बिन व्यवस्था पर पकड़ अधूरी है।
जिस सत्ता पक्ष ने
व्यवस्था नियंत्रण के मामले में
नरमी दिखलाई है, उसने सदैव मुँह की खाई है।
अतः यह कहना मुनासिब है,जो क्रूर है,वही साहिब है,
हरेक नरमदिल वाला अपना भाई है,
जिससे उस के घर बाहर की व्यवस्था
लगातार चरमराई है,
वज़ह साफ़ है,
ऐसी अवस्था में चमचों, चाटुकारों की बन आई है।
यदि शासक को अच्छे से प्रशासन चलाना है
तो लुच्चों,लफंगों,बदमाशों,अपराधियों पर
लगाम कसनी अनिवार्य हो जाती है।
यदि दबंगों के भीतर सत्ता का डर कायम रहेगा
तभी सभी से
ढंग से काम लिया जाएगा,
थोड़ी नरमी दिखाने पर तो कोई भी सिर पर चढ़ जाएगा।
क्रूर किस्म का आदमी,
जो देखने में कठोर लगे,बेशक वह नरमदिल और सहृदय हो,सुव्यवस्थित तरीके से राजकाज चला पाता है।
सत्ता डर पैदा करती है।
यह अनुशासन के नाम पर
सब को एक रखती है।
यह निरंकुशता से नहीं चल सकती,
अतः अंकुश अनिवार्य है।
बिना अंकुश
व्यक्ति
सत्ता में होने के बावजूद
अपना सिक्का चला नहीं पाता।
अपना रंग जमा नहीं पाता।
श्री मान,
सत्ता केवल साधनहीन को तंग करती है।
मायाधारी के सामने
तो सत्ता खुद ही नरमदिल बन जाती है,
वह कुछ भी कर सकती है।
सत्ता का चरित्र विचित्र है ,
वह सदा ,सर्वदा शोषकों का साथ देती आई है
और वंचितों को बलि का बकरा समझती आई है।
वह शोषकों की परम मित्र है।
इन से तालमेल बना कर सत्ता शासन निर्मित करती है। वंचितों को यह उस हद तक प्रताड़ित करती है,
जब तक वह घुटने नहीं टेकते।
सत्ता अपनी जिद्दी प्रवृत्ति के कारण बनी रहती है,
बेशक सत्ता को
शराफत का कोट पहन कर
अपनी बात जबरिया मनवानी पड़े,
सत्ता अड़ जाए,तो जिद्दी को भी हार माननी पड़ती है।
यही विचित्र चरित्र सत्ता का है।
यह जैसे को तैसा की नीति पर चलती है,
यह अपना विजय रथ
नरमी , गरमी,बेशर्मी से आगे बढ़ाती है।
यह चोरी सीनाज़ोरी के बल पर
चुपके-चुपके सिंहासन पर आसीन हो जाती है।