मैं उन्नीस मार्च को स्कूल में रसोई घर बंद कर लौट आया था अपने घर । इस सोच के साथ कि बीस मार्च को पंजाब बंद के बाद लौटूंगा स्कूल।
इक्कीस, मार्च को स्कूल वापसी के साथ , सालाना नतीजा तैयार करने के लिए अपने सहयोगियों से करूंगा बात और सालाना नतीजा चौबीस मार्च तक कर लूंगा तैयार।
पर! अफसोस !!स्कूल में हो गईं असमय कोरोना काल की छुट्टियां ही छुट्टियां । बाइस मार्च को लग गया जनता कर्फ्यू । पच्चीस मार्च से पहला लॉकडाउन । फिर एक एक करके पांच बार लॉकडाउन लगे। लॉकडाउन खुलने के बाद स्कूल पहुंचा तो अचानक खबर मिली स्कूल की आया से कि छुट्टियों के दौरान एक बिल्ली का बच्चा (बलूंगड़ा) उन्नीस मार्च को स्कूल बंद करते समय स्कूल के रसोई घर में हो गया था मानवीय चूक और अपनी ही गलती से स्कूल के रसोई घर में कैद। यह सुनकर मुझे धक्का लगा । मैं भीतर तक हो गया शोकाकुल , सचमुच था व्याकुल । एक-एक करके मेरी आंखों के सामने स्कूल की रसोई में बिल्ली के बच्चे का बंद होना, पंजाब बंद का होना , जनता कर्फ्यू का लगना , और लंबे समय तक लॉकडाउन का लगना, और बहुत कुछ आंखों के आगे दृश्यमान हो गया। मैं व्याकुल हो गया। सोच रहा था यह क्या हो गया ? मेरा जमीर कहां गया था सो ? मैं क्यों न पड़ा रो?? सच !मैं एक भारी वजन को भीतर तक हो रहा था। बेचारी बिल्ली लॉकडाउन का हो गई थी शिकार। मैं रहा था खुद को धिक्कार। उसके मर जाने के कारण ,मैं खुद को दोषी मान रहा था । आया बहन जी मुझे कह रही थीं, सर जी,बहुत बुरा हुआ । कई दिनों के बाद बिल्ली के क्षतिग्रस्त शव को बाहर निकाला गया तो बड़ी तीखी बदबू आ रही थी। सच मुझे तो उल्टी आने को हुई थी। घर जब मैं आई तो बड़ी देर तक मृत बिल्ली की तस्वीर आंखों के आगे नाचती रही यही नहीं ,कई दिनों तक वह बिल्ली रह रहकर मेरे सपनों में आती रही। सर ,सचमुच बड़ी अभागी बिल्ली थी। अब आगे और क्या कहूं? यह सब सुन मैं चुप रहा। भीतर तक कराह रहा था। उस दिन एक जून था। मेरी आंखों के आगे तैर रहा खून ही खून था। दिल के अंदर आक्रोश था। कुछ हद तक डरा हुआ था, पछतावा मेरे भीतर भरा था । मुझे लगा मैं भी दुनिया के विशाल रसोई घर में एक बिल्ली की मानिंद हूं कैद । क्या कोरोना के इस दौर में मेरा भी अंत हो जाएगा ? कोरोना का यह चक्रव्यूह कब समाप्ति की ओर बढ़ेगा ? इंसान रुकी हुई प्रगति के दौर में फिर कब से नया आगाज करेगा। हां ,कुछ समय तो प्राणी जगत बिन आई मौत मरेगा। पता नहीं, मेरी मृत्यु का समाचार, कभी मेरे दायरे से बाहर, निकल पाएगा या नहीं निकल पाएगा । क्या मेरा हासिल भी, और साथ ही सर्वस्व मिट्टी में मिल जाएगा । मृत्यु का पंजीकरण भी बुहान पीड़ितों की तरह मृतकों के पंजीकरण रजिस्टर में मेरा नाम भी दर्ज होने से रह जाएगा । लगता है यह दुखांत मुझे प्रेत बनाएगा । मरने के बाद भी मुझे धरा पर भटकाएगा।