सच है! जब जब भीतर ढेर सा दर्द इक्ट्ठा होता है, तब तब जीवन की मरुभूमि में अचानक एकदम अप्रत्याशित कैक्टस उगता है। जहां पर रेत का समन्दर हो, वहां कैक्टस का उगना। अच्छा लगता है।
मुझे विदित नहीं था कि ढेर सारा दुःख, दर्द तुम्हारे भीतर भरा होगा।
और एक दिन यह बाहर छलकेगा कैक्टस के खिले फूल बनकर, जो जीवन में रह जाएगा ऊबड़-खाबड़ मरूभूमि का होकर।
यह कतई ठीक नहीं, हम बिना लड़े और डटे जीवन रण में मरूभूमि में जीवन बसर करने से निसृत दर्दके आगे घुटने टेक दें, मान लें हार,यह नहीं हमें स्वीकार।
क्यों न हम! इस दर्द को भूल जाने का करें नाटक ।
और कैक्टस सरीखे होकर जीवन की बगिया में फूल खिलाएं! जीवन धारा के संग आगे बढ़ते जाएं !! थोड़ा सा अपने अभावों को भूलकर जी भरकर खिलखिलाएं!
सच है! कैक्टस पर फूल भी खिलते हैं। जीवन की मरूभूमि में मुसाफ़िर अपने दुःख,दर्द,तकलीफें अंदर ही अंदर समेटे सुदूर रेगिस्तान में यात्राएं करते हैं नखलिस्तान खोजने के लिए। जीवन में मृग मरीचिका और अपनी तृष्णा, वितृष्णा को शांत करने के लिए। कैक्टस के खिले फूल खोजने के निमित्त, ताकि शांत रहे चित्त। कैक्टस पर खिले फूल मुरझाए कुम्हलाए मानव चित्त को कर दिया करते हैं आह्लादित, आनंदित, प्रफुल्लित, मुदित, हर्षित।