दोस्त! अपने भीतर की नफ़रत का नाश कर, उल्फत के जज़्बात अपने भीतर भरा कर , अपनी वासना से न डरा कर, देशऔर दुनिया के सपनों को, सतत् मेहनत और लगन से साकार किया कर ।
ऐसा कुछ कहती हैं, देश के अंदर और सरहद पार रहने वाले बाशिंदों के दिलों से निकली सदा। समय पाकर जो बनतीं जातीं अवाम की दुआएं। ऐसा हमने समझ लिया है इस दुनिया में रहकर, समय की हवाओं के संग बहकर।
फिर क्यों न हम अपने और परायों को कुछ जोश भरे,कुछ होश भरे रास्तों पर आगे बढ़ना सिखलाएं , उन्हें मंज़िल तक लेकर जाएं ।