आधी दुनिया भूखी सोती है। सोचता हूं, क्या कभी लोग भूखी नंगी गुरबत से जूझ रही दुनिया की बाबत फ़िक्र करते हैं?
मुझे थाली में जूठन छोड़ने वाले अच्छे नहीं लगते। मुझे वे लोग नफरत के लायक़ लगते हैं। दुनिया खाने का सलीका सीख ले, यही काफ़ी है। हे अन्न देवता! कोई जूठन छोड़ कर आप का अपमान न करें। यही मेरी हसरत है। कोई भी खाना बर्बाद होने न दे, तो देशभर में बरकत होगी। यही मानवता के लिए बेहतर है। भूखे को अन्न मिल जाए। उसके प्राण बच जाए, इससे अच्छा कुछ नहीं हो सकता क्यों कि आदमी का जमीर कभी मर नहीं सकता। यदि मूल्य अवमूल्यन के दौर में आदमी अपने आदर्श ढंग से अपना पाए तो क्यों न सब उसे सराहना का पात्र मान लें।