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Nov 2024
कभी कभी
ठग तक को
ठेस पहुँचती है।
यही बात
ठग बाबू को
कचोटती है।
फिर भी
वह ठगने,
मनमानी करने से
आता नहीं बाज़।
वह नित्य नूतन ढंग से
ढूंढता है,वे तरीके कि
शिकार अपनी अनभिज्ञता से
हो जाएं हताश और  निराश,
आखिरकार हार मान कर,
जड़ से भूलें करना प्रतिकार!


ऐसी अवस्था में
यदि कोई साहस कर
ठग का करता है प्रतिकार।
शिकार ,होने लगता है जब,
जागरूक और सतर्क।
ऐसे में
शिकार के गिर कर
खड़े होने से ही
पहुंचती है ठग को ठेस।
और ऐसा होने पर
उसकी ठसक का गुब्बारा फूटता है,
ठग अकेले में फूट फूट कर रोता है,
वह अंदर ही अंदर खुद को कोसता है।
विडंबना है कि
वह कभी ठगी करना नहीं छोड़ता ।
कभी भी
ठगी करने का मौका
नहीं छोड़ता ।
ठग का पुरजोर विरोध ही
ठगी पर रोक लगा सकता है।
ठग को
सकते में ला सकता है।
यदि ऐसा हो जाए
तो क्या ठग
कभी
कोमा में जा सकता है?
शायद नहीं,पर
वह किसी हद तक खुद को
सुधारने की
कोशिश कर सकता है।
Written by
Joginder Singh
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   Vanita vats
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