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गर्मी में ठंड का अहसास
और
ठंड में गर्मी का अहसास
सुखद होता है,
जीवन में विपर्यय
सदैव आनंददायक होता है।

ठीक
कभी कभी
गर्मी में तेज गर्मी का अहसास
भीतर तक को जला देता है,
यह किसी हद तक
आदमी को रुला देता है।
देता है पहले उमस,
फिर पसीने पसीने होने का अहसास,
जिंदगी एकदम बेकार लगती है,
सब कुछ छोड़ भाग जाने की बातें
दिमाग में न चाहकर भी कर जातीं हैं घर,
आदमी पलायन
करना चाहता है,
यह कहां आसानी से हो पाता है,
वह निरंतर दुविधा में रहता है।
कुछ ऐसे ही
ठंड में ठंडक का अहसास
भीतर की समस्त ऊष्मा और ऊर्जा सोख
आदमी को कठोर और निर्दय बना देता है,
इस अवस्था में भी
आदमी
घर परिवार से पलायन करना चाहता है,
वह अकेला और दुखी रहता है,
मन में अशांति के आगमन को देख
धुर अंदर तक भयभीत रहता है।
उसका यह अहसास कैसे बदले?
आओ, हम करें इस के लिए प्रयास।
संशोधन, सहिष्णुता,साहस,नैतिकता,सकारात्मकता से
आदमी के भीतर बदलते मौसमों को
विकास और संतुलित जीवन दृष्टि के अनुकूल बनाएं।
क्यों उसे बार बार थका कर
जीवन में पलायनवादी बनाएं?

ठंड में गर्मी का अहसास,
गर्मी में ठंड का अहसास,
भरता है जीवों के भीतर सुख।
इसके विपरीत घटित होने पर
मन के भीतर दुःख उपजता है ।
यह सब उमर घटाता है,
इसका अहसास आदमी को
बहुत बाद में होता है।
सोचता है रह रह कर, भावों में बह बह कर
कि अब पछताए क्या होत ,जब चिड़िया चुग गईं खेत।
Written by
Joginder Singh
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   Vanita vats
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