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Vanita vats
Poems
Nov 2024
समय की घड़ी
टिक टिक
करती एक अर्न्तध्वनि
सुना रही है
एक अतृप्त प्यास बुला रही है।
दीपक की भातिं कुछ जल रहा है
जिसकी महक मन को खींच रही है।
सब कुछ तो ठीक है
फिर क्या ठीक नहीं है
जो असंतुष्टि की सीमा पर खींच रही है।
जीवन की मोमबत्ती जल रही है
समय पिघल रहा है
मन असंतोष में जल रहा है।
कुछ तो छूट रहा है
कहीं मन की गहरी छाप तो नहीं दिख रही
कहीं अनंत यात्रा के पदचिह्न तो नहीं दिख रहे।
कहीं अनंत नाद की प्रतिध्वनि तो प्रश्नचिह्न
नहीं खड़ा कर रही।
Written by
Vanita vats
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