सुना है, स्पर्श की भी अपनी एक स्मृति होती है जो अवचेतन का हिस्सा बन जाती है। यदि दिव्य की अनुभूति करना चाहते हो तो प्रार्थना करो पांच तत्वों के सुमेल के लिए ! भीतर के उजास के लिए ! दिव्यता के प्रकाश के लिए! इस के लिए संभावना खोजने के प्रयास करो। हो सके तो दुर्भावना से बचो। दिव्यता से साक्षात्कार कर पाने के लिए। वैसे... धरा पर भटकाव बहुत हैं पर सब निरर्थक सार्थक है तो केवल नैतिकता, जिस पर हावी होना चाहती अनैतिकता।
दिव्यता का संस्पर्श हमें साहसी बनाता है।
अन्यथा हम पीड़ित बने रहेंगे। इस बाबत आप क्या कहेंगे?