मन का मीत करता रहता मुझे आगाह। तू अनाप शनाप खर्च न किया कर। कठिन समय है,कुछ बचत किया कर। खुदगर्ज़ी छिपाने की मंशा से दान देता है, बिना वज़ह धन को लुटाने से बचा कर। मन का मीत करता रहता मुझे आगाह। मत बन बेपरवाह, मितव्ययिता अपना, अनाप शनाप खर्च से जीवन होता तबाह। धोखा खाने, पछताने से अपना आप बचा। देख, कहीं यह जीवन बन न जाए एक सज़ा।।