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2d
यदि मेरा
फिर से
कोई मेरा नाम रखना चाहे  
तो मुझे अच्छा लगेगा यह नाम ।
चूंकि भाता नहीं मुझे कोई काम।
श्रीमान जी,
रखिए मेरा नाम निखट्टू,सुबह से शाम तक
सुननी पड़ती
तरह तरह की बातें...!

प्रतिक्रिया देना मैने छोड़ दिया है।
गूंगा बन जीना सीख लिया है।
अकलमंद बन समझौता किया है।
फिर भी बहुत सी
अंतर्ध्वनियों ने मुझे ढेर किया है
सो अब निःशब्द हूं।

आप भी कहेंगे
निखट्टू
निशब्द कैसे हो सकता है?
उत्तर है जी,
यह तो वही जानता है।
जो कुछ अच्छा बुरा खोजने पर
प्रतिक्रिया न कर चुप रहना सीख गया है।
जिसके पास संवेदना के बावजूद चुप्पी है,
वह नि:शब्द नहीं तो क्या है?
है कोई प्रत्युत्तर जी??

अब
निखट्टू को
परिभाषित करता हूँ,
ऐसा व्यक्ति
जो देश काल से
निर्लिप्त रहे,
आदेशों के बावजूद
कुछ भी न करे।
कोई उस पर कितना ही चिल्लाए,
पर वह चुप रहने से बाज़ न आए।
...और जो जरूरत के बावजूद
कुछ न करे,
निष्क्रियता की चादर ओढ़कर
देश, घर,दुनिया में कहीं पड़ा रहे।
ऐसे आदमी को निखट्टू कहते हैं।
जिसके वजूद को सब सहने को मजबूर हैं।
कमल देखिए, उसे सारी समझ है,फिर भी चुप है।
वह निखट्टू नहीं तो क्या है?

मुझे विदित है कि निखट्टू
आदतन
लिखती, निखट्टू रह जाते हैं।
वरना,मौका मिले तो वह सब के कान कतर दें।
यदि किसी व्यक्ति  को जीवन में उद्देश्य न मिले,
तो वह धीरे धीरे  एक निखट्टू में तब्दील हो जाता है।
एक दिन चिकना घड़ा बन जाता है,
जिस के कान पर जूं तक नहीं रेंगती।
कोई कितना ही अपनी खीझ उस पर निकाले,
निखट्टू हर दम हंसता मुस्कुराता रहता है।
निखट्टू  तो निखट्टू है,
वह तो बेअसर है।
उसे अपने तरीके से जिंदगी जीनी है, भले ही
किसी को वह एकदम
सिर से पैर तक   ढीठ लगे,
बेशर्मी का ताज उसके सिर ही सजे।
भई वाह!निखट्टू के मजे ही मजे!!
Written by
Joginder Singh
36
 
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