सुना है, वह धमकी बहादुर है। उम्मीद है, पूरा पूरा भरोसा है वह अपने शब्दों पर एकदम खरा उतरेगा, गहरी मार करेगा, चूंकि वह धमकी बहादुर है, जिसे वह धमकी दे रहा है, वह सिरे का कायर हो, यह भला यकीन से कैसे कहा जा सकता है? कभी कभी शेर को सवा शेर मिल ही जाया करता है। जिस से पराजित होने वाला डरता है। न केवल डरता है, बल्कि दबता भी है।
मुझे यकीन है कि वह गीदड़ भभकी नहीं दे रहा! दिल से दहशत को हवा दे रहा !!
अब मेरी भी सुन लीजिए, धमकी बहादुर को हवा न दीजिए। बल्कि उसका सामना कीजिए। सौ बातों की एक बात कर रहा हूँ, न कि भीतर डर भर रहा हूँ। यहाँ सब स्वाभिमानी हैं, समय आने पर बनते बलिदानी हैं। प्रतिक्रिया स्वरूप हम भी धमकी बहादुर और उसके गुर्गों पर करना चाहते प्रबल प्रहार । हम उन पर करेंगे दिमाग से घात प्रतिघात और संहार...! लौटाएंगे उनको उनका उपहार उनके ही अंदाज़ में। हम उनसे उनकी बोली में करेंगे संवाद। निज भाषा का अपना स्वाद!! हम चाहते हैं करना सामना अपनी अतीत की पराजय को भूल कर धमकी बहादुरों की आसुरी शक्तियों से दो दो हाथ। हमारी रही है कामना, सदैव शोषितों वंचितों को समय रहते थामना। हम मूलतः अहिंसक हैं, नहीं चाहते मरना और मारना। न ही चाहते कभी, धमकियों के आकाओं से ... लड़ना, भिड़ना,मरना,डरना, अपने सुकून को खत्म होते देखना, बेशक कभी धमकियों के बूते आगे बढ़ना पड़े, कभी कभी समझौता करना पड़े। १३/०५/२०२०