बड़े बुजुर्ग अक्सर कहते हैं , बच्चे मस्तमौला होते हैं, उनका खेल तो शरारत है, अगर बचपन में न कोई शरारत की तो ज़िन्दगी ख़ाक जी! अभी अभी एक बंदर एकदम मस्त खिलंदर दादा जी के चश्मे को सलीके से लगा कर इधर उधर देख उधम मचाने की फिराक में था कि देख लिया दादा ने अचानक
वे अपनी छड़ी उठा कर चिल्लाए, बोले," भाग।" बंदर भी आज्ञाकारी बच्चे की तरह भाग गया। उसने कोई प्रतिकार नहीं किया। इससे पहले कई बार उसने बूढ़े दादू को खूब खिजाया था। यही नहीं कई खाद्य पदार्थों को कब्जाया था। आज कुछ ख़ास नहीं हुआ। उसने बस चश्मे को छुआ और पल भर को आंखों पर लगाया बस! और दादा की घुड़की सुन भाग गया। चश्मा नीचे गिरा और उसके शीशे पर खरोंच आ गई। शुक्र है चश्मा ठीक ही था दादा जी अखबार पढ़ने बैठ गए, बंदर किसी दूसरे मकान की छत पर धमाचौकड़ी कर रहा था। पास ही बंदर का बच्चा अपनी मां की गोद से लिपटा पड़ा था, बंदरिया उसे साथ लेकर मकानों की दूसरी कतार की ओर निकल गई थी। यह घटनाक्रम देख मेरी हँसी निकल गई। दादा जी ने मुझे घूर कर देखा, तो मैं सकपका गया। एक बार फिर से डांट खाने से बच गया। १३/११/२०२४.