चेतना कभी नहीं कहती किसी से कभी भी कि ढूंढों, सभी में कमी। बल्कि वह तो कमियों को दूर करती है, भीतर और बाहर से दृढ़ करती है।
चेतना ने कभी न कहा, "चेत ना। " वह तो हर पल कहती रहती है, " रहो चेतन, ताकि तन रहे हर पल प्रसन्न।"
सुनो, सदैव जीवन से निकली जीवंतता की ध्वनियों को।
खोजो, अपनी अन्तश्चेतना की ध्वनियों को, ताकि हर पल चेतना के संग महसूस कर सको, आगे बढ़ सको, जीवन धारा से निकलीं उमंग भरी तरंगों को,पल पल, जीवन धारा की कल कल को सुनकर तुम निकल पड़ो साधना के पथ पर जीव मर्म,युग धर्म आत्मसात कर अंतर्द्वंद्वों से दूर रह स्वयं को तटस्थ कर महसूस करो अंतर्ध्वनियों को, चेतना की उपस्थिति को।
अब सब कुछ भूल भाल कर ढूंढ लो निज की विकास स्थली। शक्ति तुम्हारे भीतर वास कर रही। उस की महता को जानो। सनातन की महिमा का गुणगान करो। अपने भीतर को गेरूआ से रंग दो। नाचो,खूब नाचो। अपने भीतर को अनायास उजास से भर दो। साथ ही जीवन के रंगों से होली खेलकर अपनी मातृभूमि को शक्ति से सज्जित कर दो। ताकि जीवन बदरंग न लगे! हर रंग जीवन धारा में फबे!!