उस्ताद जी, माना कि आप अपने काम में व्यस्त रहते हो, खूब मेहनत करते हो, जीवन में मस्त रहते हो। पर कभी कभी तो अपने कस्टमर की जली कटी सुनते हो। आप कारसाज हो, बड़ी बेकरारी से काम निपटाते हो, काम बिगड़ जाने पर सिर धुनते हो, पछताते हो।
ऐसा क्यों? बड़े जल्दबाज हो। क्षमा करना जी । मेरे उस्ताद हो। मुआफ करना , चेला करने चला, गुस्ताखी जी। अब नहीं देखी जाती,खाना खराबी जी। काम के दौरान आप बने न शराबी जी। अब अपनी बात कहता हूं। दिन रात गाली गलौज सुनता हूं। कभी कभी तो बिना गलती किए पिटता हूं। आप के साथ साथ मैं भी सिर धुनता हूं। अंदर ही अंदर खुद को भुनता हूं।
सुनिए उस्ताद, कभी कभी खाद पानी देने में कंजूसी न करें, वरना चेला...हाथ से गया समझो ,जी । कौन सुने ? रोज की खिच खिच,चील,पों जी। आप के मेहरबान ने...आफर दिया है जी।
समय कम है उस्ताद अब जलेबी की तरह साफ़ साफ़ सीधी बात जी।
जल्दबाजी में न लिया करें कोई फ़ैसला। जो कर दे जीभ का स्वाद कसैला।
हरदम चेले चपटे के नट बोल्ट न कसें। वो भी इन्सान है,,....बेशक कांगड़ी पहलवान है।
सुनो, उस्ताद... जल्दबाजी काम बिगाड़े इससे तो जीती बाजी भी हार में बदल जाती है जी। विजयोन्माद और खुमारी तक उतर जाती है। उस्ताद साहब, सौ बातों की एक बात... जल्दबाजी होवे है अंधी दौड़ जी। यदि धीमी शुरुआत कर ली जाए, तो आदमी जीत लिया करता, हार के कगार पर पहुंची बाजी...!