गुनाह जाने अनजाने हो जाए तो आदमी करे क्या? मन पर बोझ पड़ जाए तो आदमी करे क्या? वो पगला जाए क्या??
आदमी आदमियत का परिचय दे । अपने गुनाह स्वीकार लें तो ही अच्छा! समय रहते अपने आप को संभाल ले, तो ही अच्छा! गुनाह आदमी को रहने नहीं देते सच्चा।
यह ठीक नहीं आदमी गुनाह करे और चिकना घड़ा बन जाए । वह कतई न पछताए बल्कि चोरी सीनाज़ोरी पर उतर आए तो भी बुरा, आदमी बना रहता ताउम्र अधूरा। अरे भाई! तुम बेशक गुनाहगार हो, पर मेरे दोस्त हो। मित्र वर, सुनो एक अर्ज़ हम भूले न अपने फ़र्ज़ आजकल भूले जा रहे दायित्व इनको निभाया जाना चाहिए। सो समय रहते हम गलती सुधार लें।
सुन, संभलना सीख यह जीवन नहीं कोई भीख
यह मौका है बंदगी का, यह अवसर है दरिंदगी से निजात पाने का । परम के आगे शीश नवाने का। आओ, प्रार्थना कर लें। जाने अनजाने जो गुनाह हुए हैं हम से , उनके लिए आज प्रायश्चित कर लें । अपने सीने के अंदर दबे पड़े बोझ को हल्का कर लें। ९/६/२०१६.