वह कभी कभी मुझे इंगित कर कहती है, " देह में आक्सीजन की कमी होने पर लेनी पड़ती है उबासी।"
पता नहीं, वह सचमुच सच बोलती है या फिर कोतुहल जगाने के लिए यों ही बोल देती अंटशंट, जैसे कभी कभार गुस्सा होने पर, मिकदार से ज़्यादा पीने पर बोल सकता है कोई भी।
मैं सोचता हूं हर बार आसपास फैले ऊब भरे माहौल में लेता है कोई उबासी तो भर जाती है भीतर उदासी।
मुझे यह तनिक भी भाती नहीं। लगता है कि यह तो नींद के आने की निशानी है। यह महज़ निद्रा के आकर सुलाने का इक इशारा भर है, जिस से जिंदगी सहज बनी रहती है। वह अपना सफ़र जारी रखती है।
पर बार बार की उबासी मुझे ऊबा देती है। यह भीतर सुस्ती भरती है। मुझे इससे डर लगता है। लगता है ज़िंदगी का सफ़र अचानक रुक जाएगा, रेत भरी मुट्ठी में से रेत झर जाएगा। कुछ ऐसे ही आदमी रीतते रीतते रीत जाता है! वह उबासी लेने के काबिल भी नहीं रह जाता है।
चाहता हूं... इससे पहले कि उबासी मुझे उदास और उदासीन करे । मैं भाग निकलूं और तुम्हें किसी ओर दुनिया में मिलूं ।
वह अब मुझे इंगित कर रह रह कर कहती है, " जब कभी वह अपनी प्राण प्रिय के सम्मुख उबासी लेती है, भीतर ऊब भर देती है। उसके गहन अंदर अंत का अहसास भरा जाता है। फिर बस तिल तिल कर, घुटन जैसी वितृष्णा का मन में आगमन हो जाता है। यही नहीं वह यहां तक कह देती है कि उबासी के वक्त उसे सब कुछ तुच्छ प्रतीत होता है। जब कभी मुझे यह उबासी सताती है, मेरी मनोदशा बीमार सी हो जाती है। जीने की लालसा मरने लगती है।"
सच तो यह है कि उबासी के आने का अर्थ है, अभी और ज़्यादा सोने की जरूरत है। अतः पर्याप्त नींद लीजिए। तसल्ली से सोया कीजिए। बंधु, उबासी सुस्ती फैलाती है। सो, यह किसी को भाती नहीं है। इसका निदान,समय पर सोना और जागना है। उबाऊ, थकाऊ,ऊब भरे माहौल से भागना है। ३/८/२०१०.